शनि न्यायाधीश है, वह दण्ड देने वाला अधिकारी है I उसका कार्य ही अपराध करने वाले को दण्ड देना है I वह प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म के अनुसार दण्ड देता है I शनि का दण्ड बड़ा ही भयानक होता है, वह निर्दयी होकर कठोर से कठोर दण्ड देता है I जब शनि की दशा, अन्तर्दशा, ढैय्या या साढ़ेसाती लगती है तो व्यक्ति को जीवन में अनेक बाधाओं, विफलताओं, अपमान का सामना करना पड़ता है और साथ ही साथ नरक जैसा जीवन भोगना पड़ता है I ऐसे में व्यक्ति का जीवन बरबाद हो जाता है, वर्षों के परिश्रम से जो पूंजी, जो मान- सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा व्यक्ति कमाता है, शनि के प्रकोप से सभी कुछ धूमिल हो जाता है I लेकिन क्या शनि के इस भयानक प्रकोप से, इस कष्टदायी पीड़ा से छुटकारा पाया जा सकता है ? निश्चित रूप से पाया जा सकता है I शनि की पीड़ा को कम करने के लिए हमारे शास्त्रों में, पुराणों में बहुत से उपाय बतलाये गए हैं I
शनि के अशुभ फलों से सभी परिचित हैं I शनि के प्रतिकूल होने पर जीवन नरक हो जाता है I जिस स्वर्ग और नरक की बात मृत्यु के पश्चात् की जाती है, वैसा ही नरक शनि जातक को यहीं इसी धरा पर दिखा देता है I चूँकि नवग्रहों में शनि को दण्डाधिकारी का पद प्राप्त है, इसलिए शनि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता है I ये कर्म इस जन्म के ही नहीं, अपितु जन्म- जन्मान्तरों के हो सकते हैं I अगर आपने आज से कई जन्मों पूर्व भी कोई पाप किया है, तो शनि उसका फल आपको इस जन्म में भी प्रदान कर सकता है I यह जन्मपत्रिका में शनि की स्थिति पर आधारित होता है I
शनि जब विपरीत फलकारी होता है, तब वह ऐसे दुखदायी फल प्रदान करता है, जिसके कारण मनुष्य को ईश्वर की सत्ता का आभास हो जाता है I नास्तिक से नास्तिक मनुष्य भी आस्तिक हो जाते हैं I यह सर्वविदित है की भगवान गणेश के शिरच्छेदन से भगवान राम के वनवास तक का कारण शनिदेव ही थे I इसलिए जब शनि विपरीत फलकारी हो जाएं, तो प्रार्थना एवं अन्य उपाय द्वारा शनि को प्रसन्न करना ही उसके प्रकोप से बचने का एक मात्र तरीका है I वैसे शनि के विपरीत फल क्या- क्या हो सकते हैं ? यह तो आपको शनि से पीड़ित व्यक्ति ही भली- भाँति बता सकता है I सामान्यत: शनि के विपरीत होने पर निम्नलिखित नकारात्मक परिवर्तन अचानक प्राप्त होने लग जाते हैं :
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नौकरी का अचानक छूट जाना अथवा अचानक गलत जगह स्थानान्तरण होना, निलम्बन होना I
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नौकरी में दण्ड, चार्जशीट आदि का मिलना, जाँच होना, गबन आदि के केस लग जाना I
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व्यापार में लगातार घाटा I
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साझेदारों द्वारा अचानक धोखा देना I
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मुकदमेबाजी का बढ़ना I
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ऋणग्रस्तता तथा आय में लगातार गिरावट I
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स्वास्थ्य का अचानक बिगड़ना और दवाओं के लेने पर भी आराम नहीं मिलना I
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दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, हड्डी टूटना I
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पैर में लगातार चोटें आना I
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गृहक्लेश में वृद्धि होना I
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रिश्तेदारों तथा मित्रों से बिना कारण विवादों का उत्पन्न होना I
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समाज में अपयश तथा झूठे आरोप लगना I
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कुसंगति एवं बुरी आदतों का शिकार होना I
उक्त फलों में से अधिकतर नकारात्मक फल आपको भोगने पड रहे हों, तो समझ लीजिये की आप शनि के अशुभ प्रभाव में हैं I
चंद्रमा से जन्मकुंडली में जब गोचरवश शनि की स्थिति द्वादश, प्रथम एवं द्वितीय स्थान में होती है तो साढ़ेसाती कहलाती है I शनि की चंद्रमा से चतुर्थ एवं अष्टम भाव में स्थिति होने पर ढैय्या शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कष्ट देता है I लेकिन कई बार यह आश्चर्यजनक उन्नति भी प्रदान करती है I साढ़ेसाती का प्रभाव सात वर्ष एवं ढैय्या का प्रभाव ढाई वर्ष रहता है I
सामान्यतया साढ़ेसाती मनुष्य के जीवन में तीन बार आती है I प्रथम बचपन में द्वितीय युवावस्था में तथा तृतीय वृद्धावस्था में आती है I प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव शिक्षा एवं माता पिता पर पड़ता है I द्वितीय साढ़ेसाती का प्रभाव कार्यक्षेत्र, आर्थिक स्थिति एवं परिवार पर पड़ता है परन्तु तृतीय साढ़ेसाती स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव डालती है I
साढ़ेसाती से बचने के उपाय
शनि की साढ़ेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए दान, पूजन, व्रत, मन्त्र आदि उपाय किये जा सकते हैं I इसके लिए शनिवार को काला कम्बल, उड़द की दाल, काले तिल, चर्म- पादुका, काला कपड़ा, मोटा अनाज, तिल तथा लोहे का दान करना चाहिए I शनिदेव की पूजा एवं शनिवार का व्रत रखना चाहिए I उपवास के दिन उड़द की दाल से बनी वस्तु, चने, बेसन, काले तिल, काला नमक, तथा फलों का ही सेवन करना चाहिए I साथ ही स्वयं या किसी योग्य पंडित के द्वारा शनि के निम्न मन्त्र के 19000 जप सम्पन्न करवाने चाहिए I
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नमः II
शनि की साढ़ेसाती में शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक शांति एवं समृद्धि, आर्थिक सुदृढ़ता तथा कार्यक्षेत्र में उन्नति के लिए निम्नलिखित महामृत्युंजय मन्त्र के 125000 जप स्वयं या किसी योग्य पंडित के द्वारा करवाने चाहिए I
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम पुष्टिवर्धनम I
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात II
वैकल्पिक रूप से निम्नलिखित मन्त्र के प्रतिदिन 108 जप किये जा सकते हैं I
ॐ हों जूं स: ॐ भूर्भुव स्व: ॐ II
शनि की साढ़ेसाती के शुभत्व को बढ़ाने के लिए शनिवार के दिन आप 5 1 /4 रत्ती का नीलम रत्न पंचधातु में (सोना, चांदी, तांबा, लोखंड, जस्ता) या घोड़े की नाल या नाव की कील से निर्मित लोहे की अंगूठी धारण करें I लोहे की अंगूठी आप दायें हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें I
अंगूठी शुक्ल पक्ष की शनिवार की सांय सूर्यास्त के समय धारण करें I पुष्य, अनुराधा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र अति शुभ हैं I उस दिन शनिवार का उपवास भी करना चाहिए I अंगूठी धारण करने से पूर्व इसे शुद्ध दूध एवं गंगाजल में स्नान करना चाहिए तथा धूप आदि जलाकर शनि का पूजन करना चाहिए एवं निम्न मन्त्र की एक माला या 108 बार जप करना चाहिए I नीलम मध्यमा उंगली में या गले में पेंडेंट बनाकर धारण करें I
ॐ शं शनैश्चराय नमः II
अंगूठी धारण करने के पश्चात् शनि की वस्तुओं का दान देना चाहिए I इससे शनि के अशुभ प्रभाव में कमी आएगी तथा आपकी सुख शांति एवं समृद्धि में वृद्धि होगी I
श्री हनुमान चालीसा एवं श्री हनुमान अष्टक का पाठ करना श्रेष्ठ है I